सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जय श्री राम लिखकर आमंत्रण क्यों देते हैं By वनिता कासनियां पंजाब आमंत्रण पर जय श्री राम क्यों लिखते हैं आप जानते होंगे कि भारत देश में जब भी कोई आमंत्रण देना होता है तो उसके पहले जय श्री राम लिखा जाता है । जय श्री राम लिखने की यह परंपरा युगों से चली आ रही है । शादी ब्याह का आमंत्रण हो या भोजन का भारत में अधिकतर जगहों पर सबसे पहले जय श्री राम ही लिखा जाता है । इसके वैसे तो कई फायदे हैं लेकिन सबसे बड़ा फायदा यह है कि भगवान के नाम ने सब कुछ मंगल होता हैं । अगर आप चाहते हैं कि आपका शादी या भोजन का समारोह मंगल रहे तो आपको अमात्रांत में जय श्री राम जरूर लिखना चाहिए । रामायण में भगवान श्री राम के नाम, रूप और धाम को मंगल भगवान अमंगल हारी बताया गया है शायद यही वजह है कि भारत में आमंत्रण के ऊपर जय श्री राम लिखने की परंपरा सदियों पुरानी है । एक बात यह भी है कि व्यक्ति के पूर्व जन्मों के पाप के कारण उसके बने बनाए कामों में भी दिक्कत आ जाती है लेकिन अगर कोई भगवान का नाम लेता है तो उसके पुराने जन्मों के कई सारे पाप एक साथ खत्म हो जाते हैं । कबीर दास जी का कहना है कि एक बार राम का नाम स्मरण करने से व्यक्ति के करोड़ों जन्मों के पाप खत्म हो जाते हैं । जय श्री राम बोलकर नया काम शुरू इसलिए करते हैं ताकि उसमें कोई बड़ी दिक्कत ना आए । राम भगवान के नाम का जप पुण्य करने वाले ही कर पाते हैं और पाप करने वाले नहीं । अगर आमंत्रण पर भगवान का नाम लिख दिया जाए तो इससे पापी व्यक्ति भी एक बार भगवान का नाम जरूर बोलता है जिसका पुण्य लिखने वाले को भी मिलता है जिस कारण से आमंत्रण पर के श्री राम लिखने की यह परंपरा सदियों से निभाई जाती है । आमंत्रण पत्र पर गणेश जी की तस्वीर क्यों बनाते हैं कई आमंत्रण पत्रों पर गणेश जी की तस्वीर भी बनाई जाती है । ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि गणेश जी को सभी सुुभ कामों से पहले पूजा जाता है । ऐसा क्यों किया जाता है? असल में गणेश जी को सिद्धि, विद्या और बुद्धि का दायक माना जाता है । गणेश जी का पूजन किसी काम से पहले अगर किया जाए तो वह काम जरूर पूर्ण होता है । मान्यता यह है कि शिव जी ने भगवान राम की भक्ति करके अपने सहित अपने पूरे परिवार को पूजनीय बना दिया इसलिए अगर कोई चाहता है कि उसके साथ साथ उसके परिवार का भी उद्धार हो तो उसे प्रभु श्री राम की भक्ति करनी चाहिए । शिव जी के दो पुत्र गणेश जी और कार्तिकेय जी की पूजा होती है जिसमे से गणेश जी की पूजा हर मंगल कार्य से पहले की जाती है । शंकर जी की दो बहुएं रिद्धि और सिद्धि जिनकी पूजा बड़े बड़े योगी ध्यानी करते हैं और रिद्धि सिद्धि को पाने के लिए कठोर व्रत और तपस्या करते हैं । जय श्री राम शव यात्रा के समय क्यों कहते हैं राम नाम सत्य है राम नाम सत्य कहना शव यात्रा के समय इतना ज्यादा प्रचलित है कि हट कोई इस बात से परिचित है । जब भी भारत में कहीं शव यात्रा जा रही होती है तो लोग राम नाम सत्य है के नाते लगाते हैं । लोग ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि भगवान श्री राम का नाम मंगलमय है और भगवान का नाम सत्य है । लोग इस पृथ्वी पर जन्म लेकर आते हैं और कुछ समय बाद मृत्यु को प्राप्त भी हो जाते हैं लेकिन भगवान का नाम कभी नहीं मिटता और जो भी भगवान का नाम लेता है उसका मंगल अवश्य होता है । यह भी पढ़ें – रुद्राक्ष वाले बाबा बोले बागेश्वर धाम के समर्थ में CategoriesRamayan, सामान्य ज्ञान रुद्राक्ष वाले बाबा बोले बागेश्वर धाम के समर्थ में नारद जी ने भगवान विष्णु को श्राप दिया बागेश्वर धाम लंका को असल में हनुमान जी ने नहीं जलाया था मोक्ष पाना मुश्किल है या आसान बागेश्वर बाबा से न्यूज़ चैनलों के सीधे सवाल बगेश्वर धाम दिव्य दरबार में पत्रकार लेने आए परीक्षा बागेश्वर धाम वाले महाराज जी जिनका चर्चा पूरे विश्व में है लोकप्रिय लालच से बचने का उपाय श्रृंगी ऋषि कौन थे, श्रृंगी ऋषि एक हिरण से पैदा कैसे हुए? भगवान श्री राम को क्यों कहा जाता है धीर प्रशांत अच्छे लोगों की मृत्यु जल्दी क्यों हो जाती है ? महाभारत कथा भाग भाग का शीर्षक भाग-1 महाभारत की शुरुआत भाग-2 पांडवों का जन्म भाग-3 कौरवों का जन्म भाग-4 द्रोणाचार्य का गुरुकुल भाग-5 दुर्योधन और कर्ण की मित्रता भाग-6 पांडवों को जलाने का षड्यंत्र भाग-7 पांडव दुर्योधन से छिपकर कहां गए भाग-8 द्रोपदी का विवाह भाग-9 इंद्रप्रस्थ का निर्माण किसने किया भाग-10 जरासंध को किसने मारा भाग-11 शिशुपाल वध, भगवान ने शिशुपाल के 100 पाप क्यों क्षमा किए भाग-12 पांडव और कौरव के बीच चौसर का खेल भाग-13 पांडवों का वनवास जब शकुनी ने कपटपूर्वक चौसर खेला तब भगवान कृष्ण कहां थे भाग-14 अर्जुन और शिव जी का युद्ध, किसकी हुयी जीत भाग-15 अर्जुन की स्वर्ग यात्रा, उर्वशी द्वारा अर्जुन को श्राप भाग-16 राजा नल की कहानी – नल और दमयंती का विवाह कैसे हुआ भाग-17 राजा नल की गरीबी, कलयुग ने ईर्ष्यावश सारा राज्य छीन लिया भाग-18 राजा नल की कथा, नल ने अपना राज्य वापिस केसे जीता भाग-19 युधिस्ठिर गए तीर्थ, नारद जी ने बताया प्रयाग तीर्थ का महत्व भाग-20 अगस्त्य मुनि की कहानी, अगस्त्य मुनि ने समुंद्र केसे सुखाया भाग-21 श्रृंगी ऋषि कौन थे, श्रृंगी ऋषि एक हिरण से पैदा कैसे हुए? भाग-22 युवनाश्व राजा की कहानी जिन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया भाग-23 पांडवों की स्वर्ग यात्रा, अर्जुन से मिलने के लिए स्वर्ग गए भाग-24 नहुष कौन थे? नहुष इंद्र थे लेकिन एक श्राप के कारण अजगर बन गए भाग-25 पांडवों ने दुर्योधन को गंधर्वों से क्यों बचाया भाग-26 मुद्गल ऋषि की कहानी जो वरदान मिलने के बाद भी स्वर्ग नहीं गए भाग-27 पांडवों ने दुर्वाशा मुनि और 1000 शिष्यों को भोजन कैसे कराया भाग-28 यक्ष युधिष्ठिर संवाद, प्रश्न 1 – व्यक्ति का सच्चा साथी कौन भाग-29 महाभारत विराट पर्व – पांडवों का अज्ञातवास भाग-30 विदुर ने बताये दुष्ट लोगों के लक्षण भाग-31 भगवान श्री कृष्ण स्वयं ही शान्ति दूत बनकर आए भाग-32 महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले दुर्योधन ने क्या किया भाग-33 महाभारत के युद्ध की पूरी कथा

 जय श्री राम लिखकर आमंत्रण क्यों देते हैं By वनिता कासनियां पंजाब आमंत्रण पर जय श्री राम क्यों लिखते हैं आप जानते होंगे कि भारत देश में जब भी कोई आमंत्रण देना होता है तो उसके पहले जय श्री राम लिखा जाता है । जय श्री राम लिखने की यह परंपरा युगों से चली आ रही है । शादी ब्याह का आमंत्रण हो या भोजन का भारत में अधिकतर जगहों पर सबसे पहले जय श्री राम ही लिखा जाता है । इसके वैसे तो कई फायदे हैं लेकिन सबसे बड़ा फायदा यह है कि भगवान के नाम ने सब कुछ मंगल होता हैं । अगर आप चाहते हैं कि आपका शादी या भोजन का समारोह मंगल रहे तो आपको अमात्रांत में जय श्री राम जरूर लिखना चाहिए । रामायण में भगवान श्री राम के नाम, रूप और धाम को मंगल भगवान अमंगल हारी बताया गया है शायद यही वजह है कि भारत में आमंत्रण के ऊपर जय श्री राम लिखने की परंपरा सदियों पुरानी है । एक बात यह भी है कि व्यक्ति के पूर्व जन्मों के पाप के कारण उसके बने बनाए कामों में भी दिक्कत आ जाती है लेकिन अगर कोई भगवान का नाम लेता है तो उसके पुराने जन्मों के कई सारे पाप एक साथ खत्म हो जाते हैं । कबीर दास जी का कहना है कि एक बार राम का नाम स्मरण करने...
हाल की पोस्ट

🌺भक्तवत्सल भगवान 🌺नारदजी नारायण के बड़े भक्त माने जाते हैं।, एक बार वे किसी कारण विष्णुजी से मिलने गए तो उनके मुख से किसी अन्य भक्त की प्रशंसा उन्होंने सुनी। नारदजी बड़े नाराज हो गए लेकिन उन्होंने सोचा कि स्वयं विष्णु जिसकी प्रशंसा करते हैं, उस भक्त का दर्शन तो करें। उन्होंने कुछ दिन उसके पास गुजारे और उसकी भक्ति का रूप जानने की कोशिश की। तब उन्होंने देखा कि वह भक्त एक किसान था। दिनभर वह पूरा तनमन लगाकर खेती का काम किया करता था और रात जब घर लौटता था, तो खाना खाने से पहले पूर्ण रूप से एकरूप होकर नाम स्मरण करता था। दिनभर अपने काम में व्यस्त रहने वाला यह किसान पूरे दिनमें एक बार भी भगवान का नाम स्मरण नहीं करता। बस रात का कुछ समय नाम स्मरण में लगा देता है। ऐसे में यह श्रेष्ठ भक्त कैसे हो सकता है? नारदजी की उलझन बढ़ती गई, लेकिन उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। उनके मन में उठा सवाल पहचान कर विष्णु मन ही मन मुस्कुराए। उन्होंने नारदजी से कहा, 'आपको इस प्रश्न का उत्तर चाहिए। तो एक काम कीजिए, तेल से लबालब भरी एक थाली अपने सिरपर लेकर पृथ्वी की प्रदक्षिणा कर आईए। शर्त यह है कि तेल की एक भी बूंद धरती पर गिरनी नहीं चाहिए। सिर पर तेल से भरी थाली लेकर नारदजी निकल पड़े। लेकिन उन्हें यह काम जितना सहज लगा था, उतना वह था नहीं। तेल गिरने से बचाने के लिये उन्हें काफी कसरत करनी पड़ी। उनका पूरा ध्यान उसी ओर लगा रहा। प्रदक्षिणा पूरी कर नारदजी लौटे तो विष्णुने पूछा, 'कितनी बार आपने मेरा स्मरण किया? नारदजी मौन रह गए, क्योंकि तेल की थाली पर उनका ध्यान इतना लगा हुआ था कि उन्होंने एक बार भी ईश्वर का स्मरण नहीं किया। नारदजी के मौन कारण विष्णुभी समझ गए और उन्होंने कहा, 'मुनिवर, अपने परिवार के लिए सुबह से शाम तक मेहनत करने बाद वापस लौटने पर जो मुझे नहीं भूलता, वही भक्त मेरी नजर में सर्वश्रेष्ठ है🌻🌺 ❤️ श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि ॐ ❤️🌺

🌺भक्तवत्सल भगवान 🌺 नारदजी नारायण के बड़े भक्त माने जाते हैं। एक बार वे किसी कारण विष्णुजी से मिलने गए तो उनके मुख से किसी अन्य भक्त की प्रशंसा उन्होंने सुनी। नारदजी बड़े नाराज हो गए लेकिन उन्होंने सोचा कि स्वयं विष्णु जिसकी प्रशंसा करते हैं, उस भक्त का दर्शन तो करें। उन्होंने कुछ दिन उसके पास गुजारे और उसकी भक्ति का रूप जानने की कोशिश की। तब उन्होंने देखा कि वह भक्त एक किसान था। दिनभर वह पूरा तनमन लगाकर खेती का काम किया करता था और रात जब घर लौटता था, तो खाना खाने से पहले पूर्ण रूप से एकरूप होकर नाम स्मरण करता था। दिनभर अपने काम में व्यस्त रहने वाला यह किसान पूरे दिनमें एक बार भी भगवान का नाम स्मरण नहीं करता। बस रात का कुछ समय नाम स्मरण में लगा देता है। ऐसे में यह श्रेष्ठ भक्त कैसे हो सकता है? नारदजी की उलझन बढ़ती गई, लेकिन उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। उनके मन में उठा सवाल पहचान कर विष्णु मन ही मन मुस्कुराए। उन्होंने नारदजी से कहा, 'आपको इस प्रश्न का उत्तर चाहिए। तो एक काम कीजिए, तेल से लबालब भरी एक थाली अपने सिरपर लेकर पृथ्वी की प्रदक्षिणा कर आईए। शर्त यह है कि तेल की एक भी बूंद ध...

#जय_श्री_राम_जय_हनुमान #जय_श्री_राम_जय_श्री_हनुमान_जी_महाराज हनुमान उपासना सब बिगड़े कारज सिद्ध करें !हनुमान जी कलियुग में भी साक्षात भगवान बताए गए हैं, इसीलिए कहा जाता है कि, उनकी पूजा, उपासना, मंत्र और पाठ करने से अलग-अलग फल मिलते हैं और कष्ट दूर होते हैं: -1. हनुमान जी को प्रसन्न करने का सबसे सरल उपाय है, हनुमान चालीसा का पाठ। माना जाता है कि हनुमान चालिसा का पाठ करने वाले भक्त को कोई बंधक नहीं बना सकता है और उस पर जेल जाने की नौबत नहीं आती है। मान्यता है कि, गलती होने पर जेल हो जाने की स्थिति में दोषी व्यक्ति अगर 108 बार "हनुमान चालीसा" का पाठ करे और यह संकल्प करे, कि वह भविष्य में कभी बुरे काम नहीं करेगा, तो हनुमान जी की कृपा होने पर उसका संकट दूर हो जाता है। जेल से उसे मुक्ति मिल जाती है।2. हनुमान जी का एक पाठ उनके भक्तों को उनके शत्रुओं से मुक्ति दिलाता है और शत्रुओं को दंडित भी करने में मदद करता है। कहा जाता है कि एकाग्रचित होकर 21 दिन तक विधि-विधान से "बजरंग बाण" का पाठ करने से व्यक्ति को उसके शत्रुओं से मुक्ति मिलती है अथवा शत्रुओं को उनके किए गए गलत कर्मो का दंड मिल जाता है। हालांकि बजरंगबली ऎसे ही भक्तों की मदद करते हैं जो बुराई से दूर रहकर सत्य की राह पर चलते हैं।@आशीष पांडेय3. हनुमान जी की उपासना से निरोगी काया का आशीर्वाद भी मिलता है। इसके लिए सबसे सटीक पाठ है "हनुमान बाहुक" का। विधान है कि, शुद्ध जल का बर्तन सामने रखकर 26 अथवा 21 (मुहूर्त के मुताबिक) दिनों तक प्रतिदिन करने से कंठ रोग, गठिया, वात, जोड़ों का दर्द जैसे रोगों से मुक्ति मिल जाती है। ध्यान रखें कि, शुद्ध जल को प्रतिदिन पाठ के बाद पी लें और रोजाना पात्र को शुद्ध जल से भरें।4. अगर आत्मविश्वास घट रहा हो, परिस्थितियां विपरीत हों, काम नहीं बन रहा हो, तो ऎसे समय में "सुंदरकाण्ड" सबसे अचूक उपाय है। माना जाता है कि, सुंदरकांड अध्याय में हनुमान जी कि विजयगाथा है और इस तरीके से इसका पाठ करने वाला व्यक्ति आत्मविश्वास से भर जाता है।5. कई लोगों को बचपन से भूत-प्रेत और अंधेरे से डर लगता है, ऎसे लोगों के लिए हनुमान जी का एक मंत्र चमत्कारिक बदलाव करता है। हनुमान जी का यह मंत्र है, "हं हनुमंते नम:"। इस मंत्र का जाप सोने से पहले किया जाना चाहिए। मंत्र जाप से पूर्व शरीर को साफ पानी से धो लेना चाहिए। इस मंत्र के नियमित जाप से भय अपने आप दूर भागने लगता है और व्यक्ति निर्भिक बन जाता है।6. घर में सुख-शांति का संचार करने के लिए भी हनुमान जी का एक उपाय किया जा सकता है। शनिवार और मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर में गुड़-चने का प्रसाद चढ़ाएं। रोजाना घर में हनुमान चालीसा का पाठ करें। 21 दिन के बाद मंदिर में हनुमान जी को चोला चढ़ाएं। @आशीष पांडेय 7. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हनुमान जो को इष्ट मानने वाले भक्तों को रोजाना उनकी पूजा-उपासना और पाठ करना चाहिए। अगर किसी कारणवश उन्हें समय नहीं मिलता हो, तो हनुमान जी के एक मंत्र का जाप 11 बार करना चाहिए। यह मंत्र है "ऊं हनुमते नम:"। इस मंत्र के जाप से पाठ नहीं करने की कमी भी पूरी हो जाती है। साथ ही बिगड़े काम भी बनने लगते हैं।8. रोगों से बचने के लिए हनुमान जी का एक और मंत्र कारागर माना गया है। यह मंत्र है:- नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।🙏🙏 जय श्री राम 🙏🙏🙏🙏 जय श्री हनुमानजी महाराज 🙏🙏🚩🚩

#जय_श्री_राम_जय_हनुमान  #जय_श्री_राम_जय_श्री_हनुमान_जी_महाराज  हनुमान उपासना   सब बिगड़े कारज सिद्ध करें ! हनुमान जी कलियुग में भी साक्षात भगवान बताए गए हैं, इसीलिए कहा जाता है कि, उनकी पूजा, उपासना, मंत्र और पाठ करने से अलग-अलग फल मिलते हैं और कष्ट दूर होते हैं: - 1. हनुमान जी को प्रसन्न करने का सबसे सरल उपाय है, हनुमान चालीसा का पाठ।  माना जाता है कि हनुमान चालिसा का पाठ करने वाले भक्त को कोई बंधक नहीं बना सकता है और उस पर जेल जाने की नौबत नहीं आती है। मान्यता है कि, गलती होने पर जेल हो जाने की स्थिति में दोषी व्यक्ति अगर 108 बार "हनुमान चालीसा" का पाठ करे और यह संकल्प करे, कि वह भविष्य में कभी बुरे काम नहीं करेगा, तो हनुमान जी की कृपा होने पर उसका संकट दूर हो जाता है। जेल से उसे मुक्ति मिल जाती है। 2. हनुमान जी का एक पाठ उनके भक्तों को उनके शत्रुओं से मुक्ति दिलाता है और शत्रुओं को दंडित भी करने में मदद करता है। कहा जाता है कि एकाग्रचित होकर 21 दिन तक विधि-विधान से "बजरंग बाण" का पाठ करने से व्यक्ति को उसके शत्रुओं से मुक्ति मिलती है अथवा शत्रुओ...

वीणा बजाते हुए, नारदमुनि भगवान श्रीराम के द्वार पर पहुँचे।नारायण नारायण !!नारदजी ने देखा कि द्वार पर हनुमान जी पहरा दे रहे है।फहनुमान जी ने पूछा: नारद मुनि ! कहाँ जा रहे हो ?🔻नारदजी बोले: मैं प्रभु से मिलने आया हूँ। नारदजी ने हनुमानजी से पूछा प्रभु इस समय क्या कर रहे है?हनुमानजी बोले: पता नहीं पर कुछ बही खाते का काम कर रहे है ,प्रभु बही खाते में कुछ लिख रहे है।🔻नारदजी: अच्छा क्या लिखा पढ़ी कर रहे है ?हनुमानजी बोले: मुझे पता नही , मुनिवर आप खुद ही देख आना।🔻नारद मुनि गए प्रभु के पास और देखा कि प्रभु कुछ लिख रहे है।🔻नारद जी बोले: प्रभु आप बही खाते का काम कर रहे है ? ये काम तो किसी मुनीम को दे दीजिए।प्रभु बोले: नही नारद , मेरा काम मुझे ही करना पड़ता है। ये काम मैं किसी और को नही सौंप सकता।🔻नारद जी: अच्छा प्रभु ऐसा क्या काम है ?ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिख रहे हो?प्रभु बोले: तुम क्या करोगे देखकर , जाने दो।🔻नारद जी बोले: नही प्रभु बताईये ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिखते है?प्रभु बोले: नारद इस बही खाते में उन भक्तों के नाम है जो मुझे हर पल भजते हैं। मैं उनकी नित्य हाजरी लगाता हूँ ।🔻नारद जी: अच्छा प्रभु जरा बताईये तो मेरा नाम कहाँ पर है ? नारदमुनि ने बही खाते को खोल कर देखा तो उनका नाम सबसे ऊपर था। नारद जी को गर्व हो गया कि देखो मुझे मेरे प्रभु सबसे ज्यादा भक्त मानते है। पर नारद जी ने देखा कि हनुमान जी का नाम उस बही खाते में कहीं नही है? नारद जी सोचने लगे कि हनुमान जी तो प्रभु श्रीराम जी के खास भक्त है फिर उनका नाम, इस बही खाते में क्यों नही है? क्या प्रभु उनको भूल गए है?🔻नारद मुनि आये हनुमान जी के पास बोले: हनुमान ! प्रभु के बही खाते में उन सब भक्तो के नाम है जो नित्य प्रभु को भजते है पर आप का नाम उस में कहीं नही है?हनुमानजी ने कहा कि: मुनिवर,! होगा, आप ने शायद ठीक से नही देखा होगा?🔻नारदजी बोले: नहीं नहीं मैंने ध्यान से देखा पर आप का नाम कहीं नही था।हनुमानजी ने कहा: अच्छा कोई बात नही। शायद प्रभु ने मुझे इस लायक नही समझा होगा जो मेरा नाम उस बही खाते में लिखा जाये। पर नारद जी प्रभु एक डायरी भी रखते है उस में भी वे नित्य कुछ लिखते है।🔻नारदजी बोले:अच्छा ?हनुमानजी ने कहा:हाँ !🔻नारदमुनि फिर गये प्रभु श्रीराम के पास और बोले प्रभु ! सुना है कि आप अपनी डायरी भी रखते है ! उसमे आप क्या लिखते है ?प्रभु श्रीराम बोले: हाँ! पर वो तुम्हारे काम की नही है।🔻नारदजी: ''प्रभु ! बताईये ना , मैं देखना चाहता हूँ कि आप उसमे क्या लिखते है।प्रभु मुस्कुराये और बोले मुनिवर मैं इन में उन भक्तों के नाम लिखता हूँ जिन को मैं नित्य भजता हूँ।🔻नारदजी ने डायरी खोल कर देखा तो उसमे सबसे ऊपर हनुमान जी का नाम था। ये देख कर नारदजी का अभिमान टूट गया।कहने का तात्पर्य यह है कि जो भगवान को सिर्फ जीवा से भजते है उनको प्रभु अपना भक्त मानते हैं और जो ह्रदय से भजते है उन भक्तों के भक्त स्वयं भगवान होते है। ऐसे भक्तो को प्रभु अपनी ह्रदय रूपी डायरी में रखतेहै। #जय_श्री_राम_ #जय_हनुमान

वीणा बजाते हुए नारदमुनि भगवान श्रीराम के द्वार पर पहुँचे। नारायण नारायण !! नारदजी ने देखा कि द्वार पर हनुमान जी पहरा दे रहे है।फ हनुमान जी ने पूछा: नारद मुनि ! कहाँ जा रहे हो ? 🔻नारदजी बोले: मैं प्रभु से मिलने आया हूँ। नारदजी ने हनुमानजी से पूछा प्रभु इस समय क्या कर रहे है? हनुमानजी बोले: पता नहीं पर कुछ बही खाते का काम कर रहे है ,प्रभु बही खाते में कुछ लिख रहे है। 🔻नारदजी: अच्छा क्या लिखा पढ़ी कर रहे है ? हनुमानजी बोले: मुझे पता नही , मुनिवर आप खुद ही देख आना। 🔻नारद मुनि गए प्रभु के पास और देखा कि प्रभु कुछ लिख रहे है। 🔻नारद जी बोले: प्रभु आप बही खाते का काम कर रहे है ? ये काम तो किसी मुनीम को दे दीजिए। प्रभु बोले: नही नारद , मेरा काम मुझे ही करना पड़ता है। ये काम मैं किसी और को नही सौंप सकता। 🔻नारद जी: अच्छा प्रभु ऐसा क्या काम है ?ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिख रहे हो? प्रभु बोले: तुम क्या करोगे देखकर , जाने दो। 🔻नारद जी बोले: नही प्रभु बताईये ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिखते है? प्रभु बोले: नारद इस बही खाते में उन भक्तों के नाम है जो मुझे हर पल भजते हैं। मैं उनकी नित्य हाजरी ल...

हिन्दुओ के चार प्रमुख धामों में एक जगन्नाथपूरी धाम का इतिहास और मंदिर के दस चमत्कार,,,,By वनिता कासनियां पंजाब माना जाता है कि भगवान विष्णु जब चारों धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने अपने धाम बद्रीनाथ में स्नान करते हैं। पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं। पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण में रामेश्‍वरम में विश्राम करते हैं। द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ। पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं।हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में पुरी उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा है। जगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी के पूर्वी छोर पर बसी पवित्र नगरी पुरी उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से थोड़ी दूरी पर है। आज का उड़ीसा प्राचीनकाल में उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था। यहां देश की समृद्ध बंदरगाहें थीं, जहां जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, थाईलैंड और अन्य कई देशों का इन्हीं बंदरगाह के रास्ते व्यापार होता था।पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है। यह भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है। इसे श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। यहां लक्ष्मीपति विष्णु ने तरह-तरह की लीलाएं की थीं। ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार यहां भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। सबर जनजाति के देवता होने के कारण यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है। पहले कबीले के लोग अपने देवताओं की मूर्तियों को काष्ठ से बनाते थे। जगन्नाथ मंदिर में सबर जनजाति के पुजारियों के अलावा ब्राह्मण पुजारी भी हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा से आषाढ़ पूर्णिमा तक सबर जाति के दैतापति जगन्नाथजी की सारी रीतियां करते हैं। पुराण के अनुसार नीलगिरि में पुरुषोत्तम हरि की पूजा की जाती है। पुरुषोत्तम हरि को यहां भगवान राम का रूप माना गया है। सबसे प्राचीन मत्स्य पुराण में लिखा है कि पुरुषोत्तम क्षेत्र की देवी विमला है और यहां उनकी पूजा होती है। रामायण के उत्तराखंड के अनुसार भगवान राम ने रावण के भाई विभीषण को अपने इक्ष्वाकु वंश के कुल देवता भगवान जगन्नाथ की आराधना करने को कहा। आज भी पुरी के श्री मंदिर में विभीषण वंदापना की परंपरा कायम है।स्कंद पुराण में पुरी धाम का भौगोलिक वर्णन मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार पुरी एक दक्षिणवर्ती शंख की तरह है और यह 5 कोस यानी 16 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। माना जाता है कि इसका लगभग 2 कोस क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में डूब चुका है। इसका उदर है समुद्र की सुनहरी रेत जिसे महोदधी का पवित्र जल धोता रहता है। सिर वाला क्षेत्र पश्चिम दिशा में है जिसकी रक्षा महादेव करते हैं। शंख के दूसरे घेरे में शिव का दूसरा रूप ब्रह्म कपाल मोचन विराजमान है। माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा का एक सिर महादेव की हथेली से चिपक गया था और वह यहीं आकर गिरा था, तभी से यहां पर महादेव की ब्रह्म रूप में पूजा करते हैं। शंख के तीसरे वृत्त में मां विमला और नाभि स्थल में भगवान जगन्नाथ रथ सिंहासन पर विराजमान है।मंदिर का इतिहास : इस मंदिर का सबसे पहला प्रमाण महाभारत के वनपर्व में मिलता है। कहा जाता है कि सबसे पहले सबर आदिवासी विश्‍ववसु ने नीलमाधव के रूप में इनकी पूजा की थी। आज भी पुरी के मंदिरों में कई सेवक हैं जिन्हें दैतापति के नाम से जाना जाता है।राजा इंद्रदयुम्न ने बनवाया था यहां मंदिर : राजा इंद्रदयुम्न मालवा का राजा था जिनके पिता का नाम भारत और माता सुमति था। राजा इंद्रदयुम्न को सपने में हुए थे जगन्नाथ के दर्शन। कई ग्रंथों में राजा इंद्रदयुम्न और उनके यज्ञ के बारे में विस्तार से लिखा है। उन्होंने यहां कई विशाल यज्ञ किए और एक सरोवर बनवाया। एक रात भगवान विष्णु ने उनको सपने में दर्शन दिए और कहा नीलांचल पर्वत की एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है उसे नीलमाधव कहते हैं। ‍तुम एक मंदिर बनवाकर उसमें मेरी यह मूर्ति स्थापित कर दो। राजा ने अपने सेवकों को नीलांचल पर्वत की खोज में भेजा। उसमें से एक था ब्राह्मण विद्यापति। विद्यापति ने सुन रखा था कि सबर कबीले के लोग नीलमाधव की पूजा करते हैं और उन्होंने अपने देवता की इस मूर्ति को नीलांचल पर्वत की गुफा में छुपा रखा है। वह यह भी जानता था कि सबर कबीले का मुखिया विश्‍ववसु नीलमाधव का उपासक है और उसी ने मूर्ति को गुफा में छुपा रखा है। चतुर विद्यापति ने मुखिया की बेटी से विवाह कर लिया। आखिर में वह अपनी पत्नी के जरिए नीलमाधव की गुफा तक पहुंचने में सफल हो गया। उसने मूर्ति चुरा ली और राजा को लाकर दे दी। विश्‍ववसु अपने आराध्य देव की मूर्ति चोरी होने से बहुत दुखी हुआ। अपने भक्त के दुख से भगवान भी दुखी हो गए। भगवान गुफा में लौट गए, लेकिन साथ ही राज इंद्रदयुम्न से वादा किया कि वो एक दिन उनके पास जरूर लौटेंगे बशर्ते कि वो एक दिन उनके लिए विशाल मंदिर बनवा दे। राजा ने मंदिर बनवा दिया और भगवान विष्णु से मंदिर में विराजमान होने के लिए कहा। भगवान ने कहा कि तुम मेरी मूर्ति बनाने के लिए समुद्र में तैर रहा पेड़ का बड़ा टुकड़ा उठाकर लाओ, जो द्वारिका से समुद्र में तैरकर पुरी आ रहा है। राजा के सेवकों ने उस पेड़ के टुकड़े को तो ढूंढ लिया लेकिन सब लोग मिलकर भी उस पेड़ को नहीं उठा पाए। तब राजा को समझ आ गया कि नीलमाधव के अनन्य भक्त सबर कबीले के मुखिया विश्‍ववसु की ही सहायता लेना पड़ेगी। सब उस वक्त हैरान रह गए, जब विश्ववसु भारी-भरकम लकड़ी को उठाकर मंदिर तक ले आए।अब बारी थी लकड़ी से भगवान की मूर्ति गढ़ने की। राजा के कारीगरों ने लाख कोशिश कर ली लेकिन कोई भी लकड़ी में एक छैनी तक भी नहीं लगा सका। तब तीनों लोक के कुशल कारीगर भगवान विश्‍वकर्मा एक बूढ़े व्यक्ति का रूप धरकर आए। उन्होंने राजा को कहा कि वे नीलमाधव की मूर्ति बना सकते हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने अपनी शर्त भी रखी कि वे 21 दिन में मूर्ति बनाएंगे और अकेले में बनाएंगे। कोई उनको बनाते हुए नहीं देख सकता। उनकी शर्त मान ली गई। लोगों को आरी, छैनी, हथौड़ी की आवाजें आती रहीं। राजा इंद्रदयुम्न की रानी गुंडिचा अपने को रोक नहीं पाई। वह दरवाजे के पास गई तो उसे कोई आवाज सुनाई नहीं दी। वह घबरा गई। उसे लगा बूढ़ा कारीगर मर गया है। उसने राजा को इसकी सूचना दी। अंदर से कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी तो राजा को भी ऐसा ही लगा। सभी शर्तों और चेतावनियों को दरकिनार करते हुए राजा ने कमरे का दरवाजा खोलने का आदेश दिया। जैसे ही कमरा खोला गया तो बूढ़ा व्यक्ति गायब था और उसमें 3 अधूरी ‍मूर्तियां मिली पड़ी मिलीं। भगवान नीलमाधव और उनके भाई के छोटे-छोटे हाथ बने थे, लेकिन उनकी टांगें नहीं, जबकि सुभद्रा के हाथ-पांव बनाए ही नहीं गए थे। राजा ने इसे भगवान की इच्छा मानकर इन्हीं अधूरी मूर्तियों को स्थापित कर दिया। तब से लेकर आज तक तीनों भाई बहन इसी रूप में विद्यमान हैं। वर्तमान में जो मंदिर है वह 7वीं सदी में बनवाया था। हालांकि इस मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व 2 में भी हुआ था। यहां स्थित मंदिर 3 बार टूट चुका है। 1174 ईस्वी में ओडिसा शासक अनंग भीमदेव ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। मुख्‍य मंदिर के आसपास लगभग 30 छोटे-बड़े मंदिर स्थापित हैं। पहला चमत्कार... हवा के विपरीत लहराता ध्वज : श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। ऐसा किस कारण होता है यह तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं लेकिन यह निश्‍चित ही आश्चर्यजनक बात है। यह भी आश्‍चर्य है कि प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है। ध्वज भी इतना भव्य है कि जब यह लहराता है तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।दूसरा चमत्कार... गुंबद की छाया नहीं बनती : यह दुनिया का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट में क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख पाना असंभव है। मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है। हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजीनियर रहे होंगे यह इस एक मंदिर के उदाहरण से समझा जा सकता है। पुरी के मंदिर का यह भव्य रूप 7वीं सदी में निर्मित किया गया। तीसरा चमत्कार... चमत्कारिक सुदर्शन चक्र : पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है। चौथा चमत्कार... हवा की दिशा : सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है। अधिकतर समुद्री तटों पर आमतौर पर हवा समुद्र से जमीन की ओर आती है, लेकिन यहां हवा जमीन से समुद्र की ओर जाती है। पांचवां चमत्कार... गुंबद के ऊपर नहीं उड़ते पक्षी : मंदिर के ऊपर गुंबद के आसपास अब तक कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया। इसके ऊपर से विमान नहीं उड़ाया जा सकता। मंदिर के शिखर के पास पक्षी उड़ते नजर नहीं आते, जबकि देखा गया है कि भारत के अधिकतर मंदिरों के गुंबदों पर पक्षी बैठ जाते हैं या आसपास उड़ते हुए नजर आते हैं। छठा चमत्कार... दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर : 500 रसोइए 300 सहयोगियों के साथ बनाते हैं भगवान जगन्नाथजी का प्रसाद। लगभग 20 लाख भक्त कर सकते हैं यहां भोजन। कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों न बनाया गया हो लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है। मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती।मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है। है न चमत्कार! सातवां चमत्कार... समुद्र की ध्वनि : मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।इसी तरह मंदिर के बाहर स्वर्ग द्वार है, जहां पर मोक्ष प्राप्ति के लिए शव जलाए जाते हैं लेकिन जब आप मंदिर से बाहर निकलेंगे तभी आपको लाशों के जलने की गंध महसूस होगी। आठवां चमत्कार... रूप बदलती मूर्ति : यहां श्रीकृष्ण को जगन्नाथ कहते हैं। जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा विराजमान हैं। तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। यहां प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं। नौवां चमत्कार... विश्‍व की सबसे बड़ी रथयात्रा : आषाढ़ माह में भगवान रथ पर सवार होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा के घर जाते हैं। यह रथयात्रा 5 किलो‍मीटर में फैले पुरुषोत्तम क्षेत्र में ही होती है। रानी गुंडिचा भगवान जगन्नाथ के परम भक्त राजा इंद्रदयुम्न की पत्नी थी इसीलिए रानी को भगवान जगन्नाथ की मौसी कहा जाता है।अपनी मौसी के घर भगवान 8 दिन रहते हैं। आषाढ़ शुक्ल दशमी को वापसी की यात्रा होती है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष है। देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन है और भाई बलभद्र का रक्ष तल ध्वज है। पुरी के गजपति महाराज सोने की झाड़ू बुहारते हैं जिसे छेरा पैररन कहते हैं। दसवां चमत्कार... हनुमानजी करते हैं जगन्नाथ की समुद्र से रक्षा : माना जाता है कि 3 बार समुद्र ने जगन्नाथजी के मंदिर को तोड़ दिया था। कहते हैं कि महाप्रभु जगन्नाथ ने वीर मारुति (हनुमानजी) को यहां समुद्र को नियंत्रित करने हेतु नियुक्त किया था, परंतु जब-तब हनुमान भी जगन्नाथ-बलभद्र एवं सुभद्रा के दर्शनों का लोभ संवरण नहीं कर पाते थे।वे प्रभु के दर्शन के लिए नगर में प्रवेश कर जाते थे, ऐसे में समुद्र भी उनके पीछे नगर में प्रवेश कर जाता था। केसरीनंदन हनुमानजी की इस आदत से परेशान होकर जगन्नाथ महाप्रभु ने हनुमानजी को यहां स्वर्ण बेड़ी से आबद्ध कर दिया। यहां जगन्नाथपुरी में ही सागर तट पर बेदी हनुमान का प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिर है। भक्त लोग बेड़ी में जगड़े हनुमानजी के दर्शन करने के लिए आते हैं। अंत में जानिए मंदिर के बारे में कुछ अज्ञात बातें...* महान सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को प्रचुर मात्रा में स्वर्ण दान किया था, जो कि उनके द्वारा स्वर्ण मंदिर, अमृतसर को दिए गए स्वर्ण से कहीं अधिक था। * पांच पांडव भी अज्ञातवास के दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आए थे। श्री मंदिर के अंदर पांडवों का स्थान अब भी मौजूद है। भगवान जगन्नाथ जब चंदन यात्रा करते हैं तो पांच पांडव उनके साथ नरेन्द्र सरोवर जाते हैं। * कहते हैं कि ईसा मसीह सिल्क रूट से होते हुए जब कश्मीर आए थे तब पुन: बेथलेहम जाते वक्त उन्होंने भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए थे। * 9वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने यहां की यात्रा की थी और यहां पर उन्होंने चार मठों में से एक गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। * इस मंदिर में गैर-भारतीय धर्म के लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है। माना जाता है कि ये प्रतिबंध कई विदेशियों द्वारा मंदिर और निकटवर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ और हमलों के कारण लगाए गए हैं। पूर्व में मंदिर को क्षति पहुंचाने के प्रयास किए जाते रहे हैं।।। हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे।।जय हो!!!! जय सिया राम 🚩🚩🚩🚩

हिन्दुओ के चार प्रमुख धामों में एक जगन्नाथपूरी धाम का इतिहास और मंदिर के दस चमत्कार,,,, By  वनिता कासनियां पंजाब   माना जाता है कि भगवान विष्णु जब चारों धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने अपने धाम बद्रीनाथ में स्नान करते हैं। पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं। पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण में रामेश्‍वरम में विश्राम करते हैं। द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ। पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में पुरी उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा है। जगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी के पूर्वी छोर पर बसी पवित्र नगरी पुरी उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से थोड़ी दूरी पर है।  आज का उड़ीसा प्राचीनकाल में उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था। यहां देश की समृद्ध बंदरगाहें थीं, जहां जावा, सुमात...

मंगलाचरणश्लोक :शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदंब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌।रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिंवन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌॥1॥भावार्थ :- शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ॥1॥नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीयेसत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मेकामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥2॥भावार्थ :- हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनीनिर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए॥2॥अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहंदनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌।सकलगुणनिधानं वानराणामधीशंरघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥3॥भावार्थ :- अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्‌जी को मैं प्रणाम करती हूँ॥3॥

 मंगलाचरण श्लोक : शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌। रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌॥1॥ भावार्थ :- शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ॥1॥ नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा। भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥2॥ भावार्थ :- हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए॥2॥ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम...

आरती कीजै हनुमान लला की|दुष्ट दलन रघुनाथ कला की||टेक||जाके बल से गिरवर काँपे|रोग दोष जाके निकट ना झाँके||अंजनि पुत्र महा बलदाई|संतन के प्रभु सदा सहाई||दे बीरा रघुनाथ पठाये|लंका जारि सिया सुधि लाये||लंका सो कोट समुद्र सी खाई|जात पवनसुत बार न लाई||लंका जारि असुर संहारे|सियाराम जी के काज सँवारे||लक्ष्मण मुर्छित पडे़ सकारे|आनि संजीवन प्राण उबारे||पैठि पाताल तोरि जम कारे|अहिरावन की भुजा उखारे||बायें भुजा असुर दल मारे|दहिने भुजा सब संत जन उबारे||सुर नर मुनि (जन) आरती उतारे|जै जै जै हनुमान उचारे||कचंन थार कपूर लौ छाई|आरती करत अंजना माई||जो हनुमान जी की आरती गावैं|बसि बैकुंठ परम पद पावैं||लंक विध्वंस किये रघुराई|तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई||आरती कीजै हनुमान लला की|दुष्ट दलन रघुनाथ कला की||

आरती कीजै हनुमान लला की| दुष्ट दलन रघुनाथ कला की||टेक|| जाके बल से गिरवर काँपे| रोग दोष जाके निकट ना झाँके|| अंजनि पुत्र महा बलदाई| संतन के प्रभु सदा सहाई|| दे बीरा रघुनाथ पठाये| लंका जारि सिया सुधि लाये|| लंका सो कोट समुद्र सी खाई| जात पवनसुत बार न लाई|| लंका जारि असुर संहारे| सियाराम जी के काज सँवारे|| लक्ष्मण मुर्छित पडे़ सकारे| आनि संजीवन प्राण उबारे|| पैठि पाताल तोरि जम कारे| अहिरावन की भुजा उखारे|| बायें भुजा असुर दल मारे| दहिने भुजा सब संत जन उबारे|| सुर नर मुनि (जन) आरती उतारे| जै जै जै हनुमान उचारे|| कचंन थार कपूर लौ छाई| आरती करत अंजना माई|| जो हनुमान जी की आरती गावैं| बसि बैकुंठ परम पद पावैं|| लंक विध्वंस किये रघुराई| तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई|| आरती कीजै हनुमान लला की| दुष्ट दलन रघुनाथ कला की||